Saturday, June 12, 2010

मुझे एक बछडे़ की तरह प्यार करो

ओ प्रिय !
मेरी एड़ियाँ इतनी मजबूत नहीं कि तुम्हारा सामना कर सकूँ
ना ही पंजों में इतना बल कि तुमसे भाग सकूँ

मैं बेबस हूँ
तुम्हारा ठिठका हुआ हिरनोटा

मेरी गर्दन को सहलाओ
मुझे एक बछड़े की तरह प्यार करो
मेरी पीठ के अंतिम छोर तक अपना हाथ फिराओ
मैं आँखें मूँद अपना मुँह
तुम्हारे कंधे पर ठीक उस जगह टिका लेना चाहता हूँ
जहाँ तुम्हारे रंग की रोशनी फूट रही है
(प्रतिलिपि में प्रकाशित)

Wednesday, June 2, 2010

तिल

कैप्री और डीप गले की स्लीव-लैस शॉर्ट कुर्ती में
अलसाई आँखों के साथ
वह
रात ज्या दा पी लेने से सुबह तक बचे रह गए नशे सी मादक लग रही है
कहीं दूर मद्धिम चमकते लाल तारे सा
उसके होठों में सुबह की पहली सिगरेट का फूल खिल रहा है

पैर समेट घुटने वक्ष में छुपाए कुर्सी पर इस तरह बैठने से
उसकी बाँई पिंडली में पंचम का उजला टेढ़ा चाँद उभर रहा है
जो धुँए के बादलों में थोड़ा उदास लग रहा है
फिर भी उस पर बना तिल ना जाने क्यूँ उसे चिढ़ा रहा है

गोया कि सामने बैठा वह
अपनी नज़रों की उँगलियों से उसे छूकर सहला रहा है
और अपने पोरों पर सेमल के तकिए का उभार महसूस कर रहा है
उस उभार में मुँह धँसाकर
उसका रोने को जी चाह रहा है

मोबाइल इस तंद्रा को तोड़ता है
मुँह में भरे कश के साथ वह उठती है
फोन पर बात करते हुए मुँह से बादल झर रहे हैं
जिनसे वैसे तिलों की बारिश हो रही है
और वह बैठा उस बारिश में भीग रहा है
अपनी बाँह के तिल में उस तिल की शिनाख्त करता हुआ

(पेंटिंग शिव की यानी शिवकुमार गाँधी की है)