Tuesday, July 13, 2010

ओक में पानी की इच्छा

उसकी इच्छाओं में मानसून था
और मेरी पीठ पर घास उगी थी

मेरी पीठ के ढलान में जो चश्मे हैं
उनमें उसी की छुअन का पानी चमक रहा है
इस उमस में पानी से
उसकी याद की सीलन भरी गंध उठ रही है

मेरे मन की उँगलियों ने इक ओक रची है
इस ओक में पानी की इच्छा है

मैं उस मिट्टी को चूमना चाहता हूँ
जिससे सौंधी गंध उठ रही है
और जिसने गढ़े हैं उसके होठों के किनारे

Saturday, July 3, 2010

तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ

मेरे इन कंधों को
खूंटियों की तरह इस्तेमाल करो
स्पर्श, आलिंगन और चुंबन जैसी ताजा तरकारियों भरा
प्यार का थैला इन पर टाँग दो
अपनी देह की छतरी समेटो और गर्दन के सहारे यहाँ टाँग दो
मेरी गोद में सिर रख कर लेटो या पेट की मसनद लगाओ
आओ मेरी इस देह की बैठक में बैठो, कुछ सुस्ताओ
तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ