उसकी इच्छाओं में मानसून था
और मेरी पीठ पर घास उगी थी
मेरी पीठ के ढलान में जो चश्मे हैं
उनमें उसी की छुअन का पानी चमक रहा है
इस उमस में पानी से
उसकी याद की सीलन भरी गंध उठ रही है
मेरे मन की उँगलियों ने इक ओक रची है
इस ओक में पानी की इच्छा है
मैं उस मिट्टी को चूमना चाहता हूँ
जिससे सौंधी गंध उठ रही है
और जिसने गढ़े हैं उसके होठों के किनारे
Tuesday, July 13, 2010
Saturday, July 3, 2010
तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ
मेरे इन कंधों को
खूंटियों की तरह इस्तेमाल करो
स्पर्श, आलिंगन और चुंबन जैसी ताजा तरकारियों भरा
प्यार का थैला इन पर टाँग दो
अपनी देह की छतरी समेटो और गर्दन के सहारे यहाँ टाँग दो
मेरी गोद में सिर रख कर लेटो या पेट की मसनद लगाओ
आओ मेरी इस देह की बैठक में बैठो, कुछ सुस्ताओ
तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ
खूंटियों की तरह इस्तेमाल करो
स्पर्श, आलिंगन और चुंबन जैसी ताजा तरकारियों भरा
प्यार का थैला इन पर टाँग दो
अपनी देह की छतरी समेटो और गर्दन के सहारे यहाँ टाँग दो
मेरी गोद में सिर रख कर लेटो या पेट की मसनद लगाओ
आओ मेरी इस देह की बैठक में बैठो, कुछ सुस्ताओ
तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ
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