Friday, January 28, 2011

अभी-अभी तुमने और मैंने ...

अभी-अभी आसमान को डायरी का पहला सफ़हा बनाकर
अपने दस्‍तख़त के साथ
तुमने मेरे लिए तारा लिपि में कविता लिखी है

मैंने भी तुम्हारे लिए इस नम माटी से
एक दिल बनाया है
तुम आओ
अपने कैनवास 'शू' पहने
उस पर सुन्दर छाप बनाओ
इस नीम से एक टहनी माँगो
उसमें अपनी इच्छाओं के गुब्बारे टाँगो
फिर यहाँ खड़े हो
उड़ाओ बेफिक्री से

Wednesday, January 19, 2011

नहीं नहीं अब तुम मुझे याद नहीं आती

मेरी जीभ के छोर पर बचा रह गया खारापन
तुम्हारे ही शरीर के समंदर से उपजा था
और अब दौड़ रहा है घुलकर
मेरे रक्त में खलबली मचाता हुआ
वो जो खुश्बू थी तुम्हारे पसीने के इत्र से बनी
अब मेरी सांसों का हिस्सा है
तुम्हारे और मेरे बीच की दूरी और नज़दीकी की नाप का अहसास
गुदा है मेरे इस हृदय पर
तुम्हारे मुझसे उस तरह लिपटकर मिलने से बने निशान
अब भी उभरे हैं इस देह पर

अब इससे ज्यादा मैं और कैसे कहूं
कि नहीं नहीं अब तुम मुझे याद नहीं आती

Tuesday, January 4, 2011

तुम और मैं

1.
तुम हो दूर एक ख्वाबगाह
मैं हूँ यहाँ पड़ी एक परती जमीन
शुक्र है कि हमारे बीच यह चाँद है
और हम दोनों पर एक साथ पड़ रही है इसकी चाँदनी

2.
तुम पर्दा बनो
और मेरे कंधो के पेलमेट पर लटक जाओ
या कपड़ों की तरह मुझ अटैची में समा जाओ
तुम चाकू भी बन सकती हो
ताकि तरबूज की तरह मुझमें धँस पाओ

या फिर ऐसा करते हैं
मैं अपनी कमीज में दिल के सबसे पास वाला काज बनता हूँ
और तुम बटन बन कर वहाँ टँग जाओ
इस तरह तुम साथ भी रहोगी
और दिल के इतना करीब भी