Monday, August 15, 2011
चप्पलें
इन गुलाबी चप्पलों पर
ठीक जहाँ तुम्हारी ऐड़ी रखने में आती है
वहां उनका अक्स इस तरह बन गया है मेरी जान
कि अब चप्पल में चप्पल कम और तुम्हारी एड़ियाँ ज्यादा नज़र आती हैं
घिसकर तिरछे हुए सोल में
जीवन की चढ़ाई इस कदर उभर आई है
फिर भी तुम हो कि जाने कितनी बार
चढ़कर उतर आती हो
रात तनियों के मस्तूल से अपनी नावें बाँध सुस्ताती हैं चप्पलें
और दरवाजे के बाहर चुपचाप लेटी
थककर सोए तुम्हारे पैरों का पता देती हैं
Monday, August 1, 2011
बंद आँखों से दिखने का करिश्मा
प्यार एक जगह है
जिसका भूगोल तुम्हारी स्मृतियों से बना है
याद की गली के पार वो खेत बारिश से तर है
जहाँ हमने चुंबन के धान रोपे हैं
और तब से ही धानी रंग की चमक मेरी आँखों के कोर से झर रही है
इस नुक्कड़ पर लगे इमली के पेड़ के फूल अब मेरी पलकों पर खिलते हैं
और स्वाद तुम्हारे होठों में भरा है
स्वाद के इस खट्टेपन से बंद आँखों को हम ही दिखते हैं
बंद आँखों से दिखने का यह करिश्मा
सिर्फ इन्हीं गलियों में संभव है
जिसका भूगोल तुम्हारी स्मृतियों से बना है
याद की गली के पार वो खेत बारिश से तर है
जहाँ हमने चुंबन के धान रोपे हैं
और तब से ही धानी रंग की चमक मेरी आँखों के कोर से झर रही है
इस नुक्कड़ पर लगे इमली के पेड़ के फूल अब मेरी पलकों पर खिलते हैं
और स्वाद तुम्हारे होठों में भरा है
स्वाद के इस खट्टेपन से बंद आँखों को हम ही दिखते हैं
बंद आँखों से दिखने का यह करिश्मा
सिर्फ इन्हीं गलियों में संभव है
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