आओ
इस रात को एक सफर की तरह तय करके आओ
और सीधी मेरे सपनों के पानी में उतर जाओ
एक मछली
आँखों में झिलमिलाती अपनी कोमलता से भरी
यह कैसा कमाल है तुम्हारे होने का
कि भाषा खुद तुम्हारी गंध बनकर चली आती है मुझ तक
मैं इसका कातिल नहीं हो सकता
या अल्लाह मुझे माफ करना
सपनों के बाहर मृत्यु निश्चित है
तुम यहाँ रहो यहाँ साम्राग्यी
यह मेरी नींद का महासागर है
Monday, June 25, 2012
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