मेरे इन कंधों को
खूंटियों की तरह इस्तेमाल करो
स्पर्श, आलिंगन और चुंबन जैसी ताजा तरकारियों भरा
प्यार का थैला इन पर टाँग दो
अपनी देह की छतरी समेटो और गर्दन के सहारे यहाँ टाँग दो
मेरी गोद में सिर रख कर लेटो या पेट की मसनद लगाओ
आओ मेरी इस देह की बैठक में बैठो, कुछ सुस्ताओ
तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ
Saturday, July 3, 2010
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durlabh kism ki aendrik kavita.
ReplyDeletebahut badiya
ReplyDeleteजबरदस्त है भाई..
ReplyDeletebhut sunder..
ReplyDeletevery beautiful
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