कभी कभी भूलना भी याद करना होता है
ऐसे ही किसी समय में
जब मैं तुम्हें भूलने की कोशिश में लगा था
वो शायद अप्रेल के आखिरी दिनों की दोपहर रही होगी कोई
मैं इस देह के बीयाबान बन के खयाल में राह भटका था
कि एक गुलमोहर मिला
अपने पूरे नाजोनखरे के साथ
बहुत शर्माया सा
कि सुर्ख होठ थे उसके और ललाई गालों तक फैली थी
मेरे कान के पास आकर बोला
बहुत गुजरे हो मेरी छाँह से
और शाम के झुटपुटे में इस सघनता में
थामा है कोई हाथ गर्माहट भरा कई कई बार
आज बस इतना भर कर दो
इस पड़ौसी अमलतास से मुझे भी मिलवा दो
मेरा हाथ बस उसकी देह से छुआ दो
आज मेरे भीतर भी कुछ उमड़ा है
मैंने एक डाल को पकड़ अमलतास से छुआ भर दिया
कि बस क्या था
अमलतास ने एक आह भरी ठंडी
और उसकी देह से चाँदनी फूटने लगी
जिसके पानी के झिलमिलाते अक्स में
मुझे अपना बहुत कुछ याद आया
Wednesday, April 20, 2011
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bahut hi sundar rachna....ek prem yah bhi :)
ReplyDeleteसच कहा, भूलने का प्रयास किसी को याद करने के लिये ही होता है।
ReplyDeletereally liked it..
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