Sunday, May 16, 2010

ऐ मेरी दोस्त !

छुअन में वो गर्माहट लिए
जहाँ से प्यार शुरू होता है

ऐ मेरी दोस्त !
तुम्हारी हथेलियाँ
अब भी महसूस होती हैं
अपनी गर्दन पर

तुम्हारे जूड़े का वो जिद्दी बाल
जो मेरे कंधे पर उतर आया था

ठीक वैसे ही
डायरी में रखा है
बचपन में किताबों में
जैसे पंख रखे रहते थे

इसे दोस्ती कहो या प्यार
वो पंख सा कोमल तुम्हारा बाल
तुम्हारी जूड़े की पिन सा
अब भी खुबा है
मुझमें

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