कैप्री और डीप गले की स्लीव-लैस शॉर्ट कुर्ती में
अलसाई आँखों के साथ
वह
रात ज्या दा पी लेने से सुबह तक बचे रह गए नशे सी मादक लग रही है
कहीं दूर मद्धिम चमकते लाल तारे सा
उसके होठों में सुबह की पहली सिगरेट का फूल खिल रहा है
पैर समेट घुटने वक्ष में छुपाए कुर्सी पर इस तरह बैठने से
उसकी बाँई पिंडली में पंचम का उजला टेढ़ा चाँद उभर रहा है
जो धुँए के बादलों में थोड़ा उदास लग रहा है
फिर भी उस पर बना तिल ना जाने क्यूँ उसे चिढ़ा रहा है
गोया कि सामने बैठा वह
अपनी नज़रों की उँगलियों से उसे छूकर सहला रहा है
और अपने पोरों पर सेमल के तकिए का उभार महसूस कर रहा है
उस उभार में मुँह धँसाकर
उसका रोने को जी चाह रहा है
मोबाइल इस तंद्रा को तोड़ता है
मुँह में भरे कश के साथ वह उठती है
फोन पर बात करते हुए मुँह से बादल झर रहे हैं
जिनसे वैसे तिलों की बारिश हो रही है
और वह बैठा उस बारिश में भीग रहा है
अपनी बाँह के तिल में उस तिल की शिनाख्त करता हुआ
(पेंटिंग शिव की यानी शिवकुमार गाँधी की है)
Wednesday, June 2, 2010
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kamal ki kavita aur shiv ki painting ne tumhare blog ke char chand laga diye hain.great pammu
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