Tuesday, July 13, 2010

ओक में पानी की इच्छा

उसकी इच्छाओं में मानसून था
और मेरी पीठ पर घास उगी थी

मेरी पीठ के ढलान में जो चश्मे हैं
उनमें उसी की छुअन का पानी चमक रहा है
इस उमस में पानी से
उसकी याद की सीलन भरी गंध उठ रही है

मेरे मन की उँगलियों ने इक ओक रची है
इस ओक में पानी की इच्छा है

मैं उस मिट्टी को चूमना चाहता हूँ
जिससे सौंधी गंध उठ रही है
और जिसने गढ़े हैं उसके होठों के किनारे

10 comments:

  1. वाह प्रमादजी वाह!
    क्या खूब लिखा है। वर्षों बाद ओक शब्द को आँखों के सामने जीवन्त कर दिया है, अन्यथा शहर में रहने वाला व्यक्ति ओक को तो भूल ही गया है। ओक से पानी पीने का भी एक अलग ही आनन्द है। जिस सन्दर्भ में आपने ओक शब्द का प्रयोग करके इसे महत्ता प्रदान करने के साथ-साथ विषय को प्रस्तुत किया वह काबिले तारीफ है। आपने वास्तव में सजीव चित्रण किया है। बधाई एवं साधुवाद। हो सकता है कि कुछ क्षेत्रों में ओक शब्द का मतलब समझने में कुछ दिक्कत हो, अतः विनम्रता पूर्वक स्पष्ट करना चाहँूगा कि ओक, अंजुलि को कहते हैं।
    शुभकामनाओं सहित।
    आपका
    -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश
    सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है।
    इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, सरकार या अन्य किसी से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में ४३६४ आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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  2. क्षमा करे आपका नाम प्रमोद जी लिखने में त्रुटी हो गयी!

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  3. aapke shabdon mein sanjeedgee ke sath gehare yakeen baste hein,ye wah sab kah pate hain jo aapke jigar se nikalta hai. aapni jadugari barkarar rakhiye.

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  4. वाह जी ! बहुत सुन्दर ! अनुपम बिम्बों का प्रयोग ...

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  5. बहुत खूब

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  6. इस नए चिट्ठे के साथ ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  7. बड़ी सुन्दर रचना प्रमोद जी।

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  8. आप सभी का बहुत- बहुत शुक्रिया

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