मेरी जीभ के छोर पर बचा रह गया खारापन
तुम्हारे ही शरीर के समंदर से उपजा था
और अब दौड़ रहा है घुलकर
मेरे रक्त में खलबली मचाता हुआ
वो जो खुश्बू थी तुम्हारे पसीने के इत्र से बनी
अब मेरी सांसों का हिस्सा है
तुम्हारे और मेरे बीच की दूरी और नज़दीकी की नाप का अहसास
गुदा है मेरे इस हृदय पर
तुम्हारे मुझसे उस तरह लिपटकर मिलने से बने निशान
अब भी उभरे हैं इस देह पर
अब इससे ज्यादा मैं और कैसे कहूं
कि नहीं नहीं अब तुम मुझे याद नहीं आती
Wednesday, January 19, 2011
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उफ, यह तड़प, यह भाव, रसमय अभिव्यक्ति।
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