Friday, January 28, 2011

अभी-अभी तुमने और मैंने ...

अभी-अभी आसमान को डायरी का पहला सफ़हा बनाकर
अपने दस्‍तख़त के साथ
तुमने मेरे लिए तारा लिपि में कविता लिखी है

मैंने भी तुम्हारे लिए इस नम माटी से
एक दिल बनाया है
तुम आओ
अपने कैनवास 'शू' पहने
उस पर सुन्दर छाप बनाओ
इस नीम से एक टहनी माँगो
उसमें अपनी इच्छाओं के गुब्बारे टाँगो
फिर यहाँ खड़े हो
उड़ाओ बेफिक्री से

3 comments:

  1. वाह, प्रतीक स्पष्टता से बात कहते हुये।

    ReplyDelete
  2. वाह ! तारा लिपि ,
    सुन्दर कविता .

    ReplyDelete