नाराज़गी की बर्फ पर
अपनी मासूमियत की 'स्की' पर सवार हो
आओ निकल पड़ें स्कीइंग करने
शायद बर्फ को भी गुदगुदी होती होगी
और गुदगुदी होने पर वह भी तो हँसती होगी
इस भुलावे की दीवार में
स्मृति की खिड़कियाँ बना लें
लाओ अपना दायाँ नहीं तो बायाँ पाँव कुछ बढ़ाएँ
फिर रिश्ते की इस गीली बजरी में धँसाएँ
और थप थप करते ऊष्मा का एक घरोंदा बनाएँ
नाजुक सी चीजों को घास सा जिद्दी बनाएँ
कि घाम कितना भी सुखाए
बस एक हल्की सी नमी से
ये फिर अपने हरेपन में लौट आएँ
Thursday, January 5, 2012
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प्रकृति कहाँ से छोड़ सकें हम।
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