Sunday, May 16, 2010

समंदर के सपनों में चाँद

इतनी दूर से चलकर आई हो
मेरी नींद में

आओ बैठो
स्पर्श के इस गुलमोहर के नीचे
तुम्हारे लिए सपनों की दरी बिछाई है
जूड़े की पिन ढीली करो
और जरा आराम से बैठो

ऐसा लग रहा है
जैसे आज समंदर के सपनों में
चाँद उससे मिलने आया है

4 comments:

  1. toh pammu tumhe apne blog ka naam mil hi gaya badhai ho.bahud sundar naam aur blog ke liye.kya hi khoobsurat kavita hai.iss premi main ek dheeraj hai ek ashvasti ka bhav.iss prem main ek paripoorn sa tehrav hai.tum bhi ek kamaal ke kavi ho pammu

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  2. बहुत ही कोमल अभिव्यक्ति !

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  3. Behad sundar...bina kuchh kahe jane kya kya kehti huyi si....

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  4. समंदर के सपनो में चाँद!
    नही बालों को बिखेर कर अपने कंधों के दोनों ओर फैला दो.
    चाँद जानते हो वो मन भर जाने पर पलट कर भी नही देखेगा तुम्हे पर मैं?
    मैं तुम्हे आँखों में छुपा सकती हूं.
    अपनी मुट्ठी में दबा सकती हूं
    बिंदिया बना के माथे पर सजा लूंगी या..
    नन्हे बच्चे बन कर उतर आना जमीं पर
    अंगुली पकड़ कर ले जाऊंगी तुम्हे क्षितिज के उस पार.
    तुम सिर्फ चाँद नहीजीवन हो जो मुझमे धड़कते हो धड़कन बन करमत आओ किसी समंदर के सपनों में
    हा हा हा

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