Friday, October 15, 2010

एक स्त्री , जो तुम थीं

मुझे मालूम नहीं था
मैं किसके प्रेम में मारा जाऊँगा
इस शहर, हवा, इन पेड़ों में से किसके
नहीं मालूम था, इनमें कौन एक स्त्री बनकर आएगा
और भर लेगा अपनी बाँहों में
कौन अपने मेघाच्छादित केशों के पर्दे में छुपा लेगा मुझे
कौन अपने प्यारे दुपट्टे की तरह सीने से लगा लेगा मुझे
नहीं मालूम था, कौन

मैं शहर, हवा और पेड़ से आती हुई एक स्त्री की कल्पना में
गुजरता रहा साल दर साल

और तभी तुम आईं

तुम आईं तो इस शहर में भटकने का साथ मिला
और इस तरह तुमने मुझे इस शहर का प्रेम दिया
तुम आईं तो मुझे तुम्हारी गंध मिली
और इस तरह तुमने मुझे इस हवा का प्यार दिया
तुम्हारे ही साथ गुजरकर मैंने पाया इन पेड़ों के घनेपन से गुजरने का सुख
और इस तरह तुमने मुझे इन पेड़ों का अहसास दिया

इस तरह
मैं मारा गया एक स्त्री के प्यार में जो शहर, हवा और पेड़
सब कुछ एक साथ थी
एक स्त्री
जो तुम थीं

Sunday, October 3, 2010

तुम्हारा दिल मैं अपने साथ ले आता हूँ

(ई. ई. कमिंग की कविता- 'आई कैरी योर हार्ट विद मी')

तुम्हारा दिल मैं अपने साथ ले आता हूँ
मेरी जान (मैं अपने दिल में छुपाकर इसे ले आता हूँ)
मैं कभी इसके बिना नहीं होता (ओ प्रिय मैं जहाँ जाता हूँ तुम भी जाती हो,
मुझसे जो भी होता है वो तुम ही तो करती हो)
मैं नहीं घबराता
नसीब से (प्यारी तुम ही तो हो मेरा नसीब) मुझे नहीं चाहिए
ये दुनिया (तुम ही तो हो मेरी सुन्दर दुनिया, मेरा सच तुम ही हो)
चाँद ने जो कुछ भी कहा वो तुम ही हो
सूरज जो भी गाएगा वो तुम ही हो

इसमें एक गहरा राज है जिसे कोई नहीं जानता
(आत्मा या मन से भी तेज बढ़ने वाले जीवन नामक इस पेड़
की जड़ से निकली जड़, कली से निकली कली और आकाश से निकला आकाश
या तो उम्मीद कर सकता है या छुपा सकता है) और यही आश्चर्य सितारों को एक-दूसरे से अलग किए रहता है

तुम्हारा दिल मैं ले आता हूँ (मैं अपने दिल में छुपाकर इसे ले आता हूँ)

(अनुवाद : प्रमोद)